miGujarat.com નાં કુલદીપ ભટ્ટ નાં જય શ્રી કૃષ્ણ ! મિત્રો, While accompanying Pujya Bhaishri Rameshbhai Oza on keyboard, at Shrimad Bhagwat Katha (June 4, 2011 to June 12, 2011), I had captured some points/quotes being discussed (as time permitted between playing music), for my personal reference. Some friends asked for a copy and they then shared it with their other friends via email forwards. So I thought it may be of good value to share with miGujarat.com readers. Note – These details are from my rough scratchpad, and I might have made errors in writing or typing (अतः कृपया क्षम्यताम् in advance!). Just sharing for your reading pleasure !
Kuldip’s scratchpad notes from …
Shrimad Bhagwat Katha Day ONE
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- तुमहारी दुनिया तुमहारी इच्छा से बनती है.
- भक्ति हमारे लिए time pass activity हो गई है.
- If someone says God is not logical. It is true. God is beyond logic.
- Let your emotions follow thoughts in your domestic life. Let your thoughts follow emotions in your spiritual life.
व्यवहार में बुध्धि को आगे रखो और मन follow करे. आध्यात्म में (धर्म में) मन को आगे रखो और बुध्धि follow करे.
- माहत्म्य = importance
- जिसमे ‘महत्व बुध्धि’ होती है, उसमे प्रेम होता है.
- जीवन में emotions ज़रूरी है. जीवन minus emotions = Black & White movie
- हमेशा सबको सारी बाते कह नहीं सकते. पहेले सामनेवाले की योग्यता देखनी चाहिए.
Shrimad Bhagwat Katha Day TWO
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- कुछ पुराण कुछ कथाए न पढ़े जब तक योग्यता न हो. नहीं तो अमृत भी ज़हर बन सकता है.
- (light tone) Marriage is an event when male looses Bachelors’ Degree & female obtains Masters’ Degree.
- तिन मुख्य पुराण – भागवत, रामायण और गीता.
भागवत ‘आनंदतत्त्व’ प्रदान करता है. रामायण ‘सत्तत्व’ प्रदान करती है. गीता ‘चिद्तत्व’ प्रदान करती है.
भागवत प्रेम सिखाती है. रामायण सिखाती है how to live. गीता ज्ञान सिखाती है.
भागवत वियोग-शास्त्र है. रामायण प्रयोग-शास्त्र है. गीता योग-शास्त्र है.
Shrimad Bhagwat Katha Day THREE
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- स्कन्द पुराण और पद्म पुराण में भागवत पुराण का माहत्म्य समजाया गया है.
- आत्मश्लागा मृत्यु सामान है. अपने मुह से अपना बखान करना उचित नहीं है.
- व्यासजीने गीता को महाभारत में जिस जगह पे रखा है वह बहुत विचित्र और interesting है. पार्थ को (अर्जुन को) ज्ञान का पाठ कराने के लिए भागवत को महाभारत के पुराण में रखा गया है.
- इदं शरीरं क्षेत्रं – शारीर क्षेत्र है.
- जीवन में बेसुरे न बने. बोले कुछ और करे कुछ, वैसा न करे.
- स्व से पर तक जाने को संसार कहते है. पर से स्व की और जो ले आए उसे आध्यात्म कहते है.
- स्व में जो स्थित हो गया वह स्वस्थ है.
- भागवत में संसार को रोग कहा है. संसार का दूसरा नाम है समस्या. लेकिन समंदर में लहेरे उठती रहती है.
- हर लहर उठती है मिटने के लिए. थोड़ी समजदारी, थोड़े धैर्य से काम ले. समस्याए आती है, तो चली भी जाती है.
Shrimad Bhagwat Katha Day FOUR
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- समस्या आने पर इस गुरु मंत्र को याद करें – “ये दिन भी चले जाएंगे”
- संस्था का स्थापक बनना सरल है, व्यवस्थापक बने रहना कठिन है.
- भागवत सारे ग्रंथो (उपनिषद्, पुराणों, वेद, स्मृति इत्यादि) का सार है. भागवत is essence of all vedas and other scriptures.
- शूल से घिरा हुआ है गुलाब ज़िन्दगी. और काल रूपी सर्प सबको डसता है.
- दुर्लभं भारते जन्म. भारत भोग की नहीं, कर्म की भूमि है.
- जो अर्थ का दास हो वो अविनाशी का दास नहीं बन सकता.
Shrimad Bhagwat Katha Day FIVE
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- शंकराचार्य ने कहा है – वित्त गरीबो को (संसार को) दो और चित्त कृष्ण को.
- Good reading is very important. हर घरमे मंदिर हो, तो Library भी हो.
- संतोष रखना उचित है. सारी आवश्यकताओ की पूर्ति हो सकती है. सारी इच्छाओ की नहीं.
- कल पे काम मत छोडो. कल होती तो है, लेकिन आती नहीं.
- भागवत में १२ स्कन्द है, और इन १२ स्कन्दो में इन ६ प्रश्नों के उत्तर है:
शास्त्रों का सार क्या है ?
शास्त्रों का श्रेय क्या है ?
शास्त्रों के श्रेय की प्राप्ति का साधन क्या है ?
भगवान् के अवतार का प्रयोजन क्या है ?
कितने अवतार है ? कौनसे कौनसे अवतार है ?
भगवान् स्वधाम गए तब धर्म किसकी शरण में आ गया ?
- अध्यात्म में अर्थ साध्य बन जाए, और धर्म साधन – वो अनुचित है.
- धन की तिन गतियाँ है:
दान (यश)
भोग (सांसारिक आवश्यकताओ पे धन खर्च करना)
नाश (अधम गति. बिना खर्च किया हुआ धन जो किसी के काम न आए)
- उद्यम से कार्य की पूर्ति होती है. केवल इच्छा करने से नहीं.
- अपनी नेकी और दूसरो की बदी को भूलो.
इश्वर और मृत्यो को याद रखो.
Shrimad Bhagwat Katha Day SIX
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- भागवत में कहा गया है के – विद्या विक्रय, गौ विक्रय और कन्या विक्रय पाप है.
- Need to ensure mutual harmony, given the speed of technological growth.
- इस दुनिया में जितने भूखे मरते है, उनसे अधिक ज्यादा खाने वाले मरते है. खाने पे control रखो !
- भागवत में नारदजी और व्यास जी को समाज सुधारक कहा गया है.
- what a loop of busy schedules! खाना खाया? नहीं, काम में से समय नहीं मिला. समय नहीं मिला? तो फिर काम क्यों कर रहा है? अरे ! काम नहीं करेंगे तो खाएंगे कैसे ?
Shrimad Bhagwat Katha Day SEVEN
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- इन पुराणों और उनमे छिपे रहस्यों को आने वाली पीढ़ी के बच्चे नहीं जानेंगे तो बहुत वंचित रह जाएंग.
- हर रोज़ सुबह १-१/२ सत्कर्म करें और सायं १-१/२ सत्संग करें.
- भागवत में कहा गया है – संपत्ति का १०% भाग परमार्थ में निकाले तब धन शुध्ध रहेगा. समय का भी १०% भाग परमार्थ में उपयोग करें.
- तर्क को तर्क से काटो.
तर्क अपने आपमें कोई उत्तर नहीं है.
तर्क से तार्किक को हरा सकते है, समजा नहीं सकते.
Shrimad Bhagwat Katha Day EIGHT
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- संश्था की उन्नति कितनी ज्यादा धन राशि जुड़े उससे नहीं, कितने ज्यादा लोग जुड़े उसमे है.
- कर्म निरंतर होता है. तो ऐसा कर्म करो जिससे उद्धार हो.
- अन्धकार से लड़के अन्धकार दूर नहीं होता. दिया जलाओ …
- प्रेम लगातार बढे वाह ‘रति’ है. जिसमे रति होती है उसमे मति होती है.
- प्रेम बंधन है. लेकिन लदा हुआ नहीं. स्वीकार किया हुआ.
- पुराण कहते है की प्रमाद मनुष्य की कब्र है, और आलस मनुष्य की मृत्यु है.
- अकारण वृक्ष काटना पाप है. पेड़ पौधे विराट के रोम है.
- जो भी अभिमान करता है वाह इश्वर से disconnect हो जाता है.
Shrimad Bhagwat Katha Day NINE
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- कृष्ण की रास लीला cosmic dance है. निरंतर है. योगी जिसे समाधि कहते है, भागवत में उसे रास कहा है.
- चिन्मय में तन्मय हो जाना योग है.
- शास्त्रों के विधान के अनुसार कर्म करना चाहिए …
- वेद सीखे हुए priests का सन्मान करें. वेद शिक्षा गुरु मुखी विद्या है.
- मन्त्र बोलने वाले का जीवन सदाचारी होना चाहिए.
- भागवत के अनुसार, मूर्ति अधिष्ठान (आधार) है.
- भक्ति के भाव (types):
वात्सल्य – elder’s love.
श्रृंगार – भगवान् को पति मानना (मीराबाई की तरह)
सख्य – भगवान् को मित्र मानना (द्रौपदी और अर्जुन की तरह)
दास्य – खुद को भगवान् का सेवक मानना
शांत – योगिओ की तरह मानना के ‘में भगवान् का अंग हूँ’
- भगवान् के प्रति प्रेम का दुनिया के सामने ढिंढोरा पीटने की ज़रूरत नहीं है.
- भागवत के अनुसार लग्न के लिए वर / वधु ढूंढने के criteria की यह सूचि दी गई है:
कुल, शील, रूप, विद्या, वय, धन, धाम
- वृन्दावन कृष्ण और गोपिओ का रासांगन है तो, कृष्ण और कामदेव का रणांगन भी है.
- बोलना प्रभु की पूजा है तो, मौन प्रभु की प्रतीक्षा है.
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